Saturday 12 November 2016

अब कैसी अमावास्या। नित्य अनिरुद्ध पूर्णिमा ॥ (Post In Hindi)

।। हरि: ॐ ।।  

१२-११-२०१६

अब कैसी अमावास्या । नित्य अनिरुद्ध पूर्णिमा ॥

(सद्गुरुनिष्ठ श्रद्धावान के जीवन में अमावास्या हो ही नहीं सकती, क्योंकि उसके जीवन में तो नित्य अनिरुद्ध पूर्णिमा ही रहती है।)
हर एक श्रद्धावान भक्त परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध से मिलने के लिए उत्सुक होता है, व्याकुल होता है। लेकिन रोजमर्रा के जीवन की विभिन्न जिम्मेदारियों के कारण उसके लिए मुंबई श्रीहरिगुरुग्राम आना संभव होता ही है, ऐसा नहीं है। मगर फिर भी गुरुपूर्णिमा और अनिरुद्ध पूर्णिमा इन दो दिनों में सद्गुरुक्षेत्र, श्रीहरिगुरुग्राम आकर दर्शन करने का प्रयास श्रद्धावान भक्त करते हैं।
सद्गुरुतत्त्व सदैव हमें हमारा उचित भरभरकर देने के लिए उत्सुक, तत्पर एवं समर्थ होता है और हमारी क्षमता के अनुसार देता भी रहता है। हमारी क्षमता बढाने के लिए वह निरंतर प्रयासशील रहता है।
अकारण करुणा से भरे और हम से निरपेक्ष प्रेम करने वाले सद्गुरुतत्त्व के चरणों में हम गुरुपूर्णिमा और अनिरुद्ध पूर्णिमा इन पावन पर्वों पर जब यात्रा करते हैं, तब ‘वह’ हमारी छोटी झोली बडी बना देता है, झोली में यदि कोई छेद हो तो उसे नष्ट कर देता है और हमारी झोली पूरी भर भी देता है।
किसी से भी कभी भी कुछ भी न लेने वाले और किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखने वाले सद्गुरुतत्त्व की इच्छा होती है कि उसके ‘सरकार’ का अर्थात् उस दत्तगुरु का, उस आदिमाता चण्डिका का खजाना उनके बच्चे ले जायें और इसके लिए गुरुपूर्णिमा और अनिरुद्ध पूर्णिमा ये हम श्रद्धावान भक्तों के लिए दो पर्व ही हैं।
श्रीसाईसच्चरित में श्री साईनाथ जी के मुख के बोल हम पढते हैं -
उतून चालिला आहे खजिना । एकही कोणी गाडया आणीना ।
खणा म्हणतां कोणीही खणीना । प्रयत्न कोणा करवेना ॥
मी म्हणें तो पैका खणावा । गाडयावारीं लुटून न्यावा ।
खरा माईचा पूत असावा । तेणेंच भरावा भांडार ॥ 
- श्रीसाईसच्चरित ३२ / १६२ व १६३
(श्री साईनाथ जी कहते हैं - ‘मेरे सरकार का खजाना भरपूर है और वह भरभरकर बह रहा है। परन्तु कोई भी उसे ले जाने के लिए गाडी नहीं ले आता। मैं तो कहता हूँ कि उसे खोदकर गाडी में भरकर ले जाओ, परन्तु कोई भी कोशिश करना नहीं चाहता। भक्ति करने वाला सच्चा भक्त स्वयं अपना भांडार भर ले।)
हमारी झोली भरकर देने के लिए सद्गुरुतत्त्व समर्थ ही है, हमें केवल छोटा सा प्रयास करना है, हमारा अपना ही भांडार भरने के लिए! हमें बस इतना ही करना है, गुरुपूर्णिमा और अनिरुद्ध पूर्णिमा इन पर्वों पर सद्गुरुचरणों में यात्रा करनी है। मीनावैनी कहती हैं उसके अनुसार ऐसे सद्गुरुनिष्ठ श्रद्धावान के जीवन में अमावास्या हो ही नहीं सकती, क्योंकि उसके जीवन में तो नित्य अनिरुद्ध पूर्णिमा ही रहती है।

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