।। हरि: ॐ ।।
‘अंबज्ञोऽस्मि’ ‘नाथसंविध्’ ‘अंबज्ञोऽस्मि’ का अर्थ है-मैं अंबज्ञ हूँ। अंबज्ञता का अर्थ है-आदिमाता के प्रति श्रद्धावान के मन में होनेवाली और कभी भी न ढल सकनेवाली असीम सप्रेम कृतज्ञता। (संदर्भ–मातृवात्सल्य उपनिषद्) नाथसंविध् अर्थात् निरंजननाथ, सगुणनाथ और सकलनाथ इन तीन नाथों की इच्छा, प्रेम, करुणा, क्षमा और सामर्थ्य सहायता इन पंचविशेषों के द्वारा बनायी गयी संपूर्ण जीवन की रूपरेखा। (संदर्भ–तुलसीपत्र १४२९)
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॥ हरि: ॐ ॥
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मेरी कॉलेज की सहपाठी दोस्त चारु ने हमारे बॅचमेट्स् के ग्रुप में अपनी आवाज़ में ‘ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ’ यह गीत पोस्ट किया। उसने अपनी मधुर आवाज़ में यह गीत (फिल्म में लतादीदी द्वारा गाया गया) बहुत ही सुन्दर रूप में गाया था।
पुराने समय के ये गीत हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। इस गीत को इतने सालों से सुनते हुए मेरे मन में जो भाव आते थे, उन्हें अपने दोस्तों के साथ शेअर करने का मन हुआ और उसमें से कुछ लिखा गया, जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मैं गीत-संगीत का जानकार नहीं हूँ, पर दोस्तों के साथ अपने दिल की बात साझा करना अच्छा लगता है। लिखने में मुझसे कोई गलती हुई हो तो क्षमा चाहता हूँ। आशा करता हूँ कि मेरे दोस्त इसे पसंद करेंगे।
।। हरि: ॐ ।।
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