‘अंबज्ञोऽस्मि’ ‘नाथसंविध्’ ‘अंबज्ञोऽस्मि’ का अर्थ है-मैं अंबज्ञ हूँ। अंबज्ञता का अर्थ है-आदिमाता के प्रति श्रद्धावान के मन में होनेवाली और कभी भी न ढल सकनेवाली असीम सप्रेम कृतज्ञता। (संदर्भ–मातृवात्सल्य उपनिषद्) नाथसंविध् अर्थात् निरंजननाथ, सगुणनाथ और सकलनाथ इन तीन नाथों की इच्छा, प्रेम, करुणा, क्षमा और सामर्थ्य सहायता इन पंचविशेषों के द्वारा बनायी गयी संपूर्ण जीवन की रूपरेखा। (संदर्भ–तुलसीपत्र १४२९)
Sunday, 26 October 2014
Wednesday, 22 October 2014
सहस्र तुलसीपत्र अर्चन विशेषांक (Post in Hindi)
॥ हरि: ॐ॥
२२-१०-२०१४
सहस्र तुलसीपत्र अर्चन विशेषांक
‘भक्ति और विज्ञान के परस्पर-समन्वय से सभी प्रकार की समस्याओं का सर्वथा निराकरण किया जा सकता है’, यह मूलमन्त्र मेरे सद्गुरु परमपूज्य श्री अनिरुद्धजी ने अर्थात् बापु ने (डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी, एम्. डी. मेडिसीन) अपने श्रद्धावान मित्रों को देकर अपने कार्य की नींव रखी।
परमपूज्य बापुजी मुंबई में हर गुरुवार को मराठी में श्रीविष्णुसहस्रनाम पर और हिन्दी में ‘श्रीसाईसच्चरित’ पर प्रवचन करते हैं। आदिमाता चण्डिका की महिमा, चण्डिकाकुल एवं सद्गुरुतत्त्व की गरिमा बताने के साथ साथ वे हनुमानचलिसा, श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड, रामायण आदि ग्रन्थों में से संदर्भ देते हुए मर्यादाशील भक्तिमार्ग पर चलते हुए गृहस्थी और परमार्थ को किस तरह सफल बनाना चाहिए, इस बात को बड़ी ही सरलता से समझाते हैं।
वे ‘प्रत्यक्ष’ इस दैनिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं। दुनिया के रंगमंच की परिस्थिति का निरन्तर अध्ययन एवं चिन्तन करके परमपूज्य बापुजी ने ‘तृतीय महायुद्ध’ इस विषय पर ‘प्रत्यक्ष’ में प्रदीर्घ अग्रलेखमाला लिखी, जिसे आगे चलकर पुस्तक के रूप में (मराठी, हिन्दी और अँग्रेज़ी इन तीन भाषाओं में) प्रकाशित किया गया।
जीवनसंग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मानव को जिस मनोबल की, कुशलता की, मार्गदर्शन की एवं परमेश्वरी कवच की ज़रूरत रहती है, वह सब कुछ उसे दिलानेवाला मार्ग है- श्रीरामदूत हनुमानजी के द्वारा दिग्दर्शित किया गया मर्यादापूर्ण भक्ति का मार्ग अर्थात् ‘सुन्दरकाण्ड मार्ग’। और सन्तश्रेष्ठ गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी द्वारा विरचित श्रीरामचरितमानस का सुन्दरकाण्ड यह इसी स्वर्णिम मर्यादामार्ग को प्रकाशित करनेवाला भगवत्-प्रकाश है, यह बापुजी का विश्वास है।
इसी सुन्दरकाण्ड मार्ग से सभी को भली भाँति परिचित कराने के उद्देश्य से बापुजी दैनिक पत्रिका ‘प्रत्यक्ष’ में ‘तुलसीपत्र’ यह अग्रलेखमाला लिख रहे हैं। इस अग्रलेखमाला का 1000वां लेख दिनांक 5 ङ्गरवरी 2014 को प्रकाशित हो चुका है।
सब कुछ दिया! हमारे जीवन को सुंदर बनाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह सब कुछ बापू ने इस माध्यम से हमें दिया है। युद्ध करेंगे मेरे श्रीराम। समर्थ दत्तगुरु मूल आधार। मैं सैनिक वानर साचार। रावण मरेगा निश्चित ही॥ इस आप्तवाक्य का एक बार जब वानरसैनिक मनःपूर्वक स्वीकार करता है, तब उसी क्षण उसके जीवन में सुन्दरकाण्ड की शुरुआत हो जाती है।
सुंदरकाण्ड की अग्रलेखमाला का अध्ययन करते समय हमारी मनश्चक्षुओं के सामने सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी का योद्धास्वरूप बार बार आता रहता है। श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज प्रथम खंड ‘सत्यप्रवेश’ में सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध स्वयं अपने हस्ताक्षर सहित लिखते हैं- ‘मैं योद्धा हूँ और जो भी अपने प्रारब्ध के साथ युद्ध करना चाहता है, उन्हें युद्धकला सिखाना यह मेरा शौक है।’
दुष्प्रारब्ध के खिलाफ़ युद्ध करने की कला सिखाकर यह अग्रलेखमाला हमें श्रद्धावान वानरसैनिक बनाती है। प्रारब्ध के खिलाफ़ युद्ध करना बहुत ही कठिन है और इसीलिए सुन्दरकाण्ड को अपनाकर राजाराम की शरण में जाना यह हमारी ज़रूरत है।
फिलहाल बापू वसुन्धरा पृथ्वी के इतिहास के बारे में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन कर रहे हैं। निंबुरावासियों की हवस के बारे में, वसुन्धरा पृथ्वी पर हुए उनके सहेतुक आगमन के बारे में, उनके कपट-कारस्तान के बारे में इस इतिहास के माध्यम से खुलासा हो रहा है। मुख्य तौर पर देखा जाये तो आज का मानव ऐसा क्यों है, उसके मन में होनेवाली देवसंकल्पना ऐसी क्यों है, उसके मन में उत्पन्न होने वाले भय का कारण क्या है, इस प्रकार के अनेक मुद्दों का स्पष्टीकरण इतिहास के इस अध्ययन से हो रहा है।
मासिक कृपासिन्धु अक्टूबर 2014 के अंक को सहस्र तुलसीपत्र अर्चन विशेषांक के रूप में मराठी, हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित किया गया रहा है। नवंबर 2014 में गुजराती भाषा में इस विशेषांक को प्रकाशित किया जायेगा।
For more details, pl refer-
http://aniruddhafriend-samirsinh.com/sahastra-tulasipatra-archan-visheshank-2/
Monday, 20 October 2014
Friday, 17 October 2014
Saturday, 4 October 2014
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