।। हरि: ॐ ।।
07-03-2019
त्रिविक्रम जल - एक अध्ययन (हिन्दी)
त्रिविक्रम जल की शीशी एक वर्ष बाद गुरुक्षेत्रम् आकर इस विधि से पुन: भारित यानी सिद्ध करें।
विधि-
१) एक बार गुरुक्षेत्रम् मंत्र कहें।
२) ‘ॐ त्रातारं इन्द्रं अवितारं इन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरं इन्द्रंम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतं इन्द्रं स्वस्ति न: मघवा धातु इन्द्र: ॥’
यह मंत्र ११ बार कहें।
३) पुन: एक बार गुरुक्षेत्रम् मंत्र कहें।
किसी अपरिहार्य कारणवश एक वर्ष बाद गुरुक्षेत्रम् आकर शीशी सिद्ध करना संभव नहीं हुआ यानी एक वर्ष से अधिक समय बीत जाये तो ‘ॐ त्रातारं इन्द्रं अवितारं इन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरं इन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतं इन्द्रं स्वस्ति न: मघवा धातु इन्द्र: ॥’ यह मंत्र ११ बार की जगह २२ बार कहें, यह भी सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध ने अपने प्रवचन में कहा था।
विधि-
१) एक बार गुरुक्षेत्रम् मंत्र कहें।
२) ‘ॐ त्रातारं इन्द्रं अवितारं इन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरं इन्द्रंम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतं इन्द्रं स्वस्ति न: मघवा धातु इन्द्र: ॥’
यह मंत्र ११ बार कहें।
३) पुन: एक बार गुरुक्षेत्रम् मंत्र कहें।
किसी अपरिहार्य कारणवश एक वर्ष बाद गुरुक्षेत्रम् आकर शीशी सिद्ध करना संभव नहीं हुआ यानी एक वर्ष से अधिक समय बीत जाये तो ‘ॐ त्रातारं इन्द्रं अवितारं इन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरं इन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतं इन्द्रं स्वस्ति न: मघवा धातु इन्द्र: ॥’ यह मंत्र ११ बार की जगह २२ बार कहें, यह भी सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध ने अपने प्रवचन में कहा था।