‘अंबज्ञोऽस्मि’ ‘नाथसंविध्’ ‘अंबज्ञोऽस्मि’ का अर्थ है-मैं अंबज्ञ हूँ। अंबज्ञता का अर्थ है-आदिमाता के प्रति श्रद्धावान के मन में होनेवाली और कभी भी न ढल सकनेवाली असीम सप्रेम कृतज्ञता। (संदर्भ–मातृवात्सल्य उपनिषद्) नाथसंविध् अर्थात् निरंजननाथ, सगुणनाथ और सकलनाथ इन तीन नाथों की इच्छा, प्रेम, करुणा, क्षमा और सामर्थ्य सहायता इन पंचविशेषों के द्वारा बनायी गयी संपूर्ण जीवन की रूपरेखा। (संदर्भ–तुलसीपत्र १४२९)
Wednesday, 2 January 2019
Ayurveda-Swardhuni-026- आयुर्वेदातील विविध न्याय - भाग २ - यूका-माहिष न्याय, घुणाक्षर न्याय, काकतालीय न्याय - चरकसंहिता शारीरस्थान ५/३ पुरुषोऽयं लोकसंमित:, चरकसंहिता सूत्रस्थान १/१३४ चक्रपाणि टीका - घुणाक्षर-न्यायेन दैवागतो भेषजस्य सम्यग्योग इति (Sanskrit- Marathi)
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