Wednesday, 20 May 2015

Panchamukha Hanumat Stotram (Post In Hindi)


॥ हरि: ॐ ॥



20-05-2015



नमोऽस्तु ते पञ्चमुख-रामदूत




‘श्रीश्वासम्’ उत्सव में श्रीपंचमुखहनुमानजी के दर्शन श्रद्धावानों को परिक्रमा के दौरान हो रहे थे। इस परिक्रमा में श्रद्धावान अन्य स्तोत्र-मन्त्रों के साथ ‘श्री पञ्चमुखहनुमत्स्तोत्रम्’ भी सुन रहे थे।

इस स्तोत्र के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं। श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रन्थराज के द्वितीय खण्ड प्रेमप्रवास में 93वें पन्ने पर यह स्तोत्र है। इस पञ्चमुखहनुमत्स्तोत्रम् के हर एक श्‍लोक की अंतिम पंक्ति ‘नमोऽस्तु ते पञ्चमुखरामदूत’ यह है। 





शास्त्रों में बताये गये अनेक मार्गों में से योगमार्ग, ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग, भक्तिमार्ग और मर्यादामार्ग ये पाँच सुविदित मार्ग माने जाते हैं। श्रीपंचमुख-हनुमानजी इन पाँच मार्गों के अधिष्ठाता हैं, यह बात इस स्तोत्र में कही गयी है। श्रीपंचमुख-हनुमानजी का एक एक मुख उनके एक एक मार्ग के अधिष्ठातृत्व को बयान करता है। यह क्रम इस तरह है- हयानन यह योगमार्ग की दिशा देता है, नरसिंहमुख यह ज्ञानमार्ग का शास्ता है, कर्ममार्ग का धुरिण वराहवदन है, गरुडमुख यह भक्तिमार्ग का अधिष्ठाता है और कपिमुख यह मर्यादामार्ग को प्रबल प्रेरणा देता है।

(संदर्भ: श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रन्थराज द्वितीय खण्ड प्रेमप्रवास पृष्ठ क्र. 93)

ये पाँचों मार्ग मानव के समग्र जीवन-विकास के लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं। हनुमानजी की कृपा से हम समर्थता से इन पर चल सकें, इस प्रार्थना के साथ श्रद्धावान इस ‘पञ्चमुखहनुमत्स्तोत्रम्’ का पाठ करते हैं। श्रीराम की भक्ति करने की इच्छा और प्रेरणा भी हनुमानजी ही देते हैं और श्रीराम की भक्ति करने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं, यह भी श्रद्धावान जानते हैं। ‘पञ्चमुखहनुमत्स्तोत्रम्’ में अत एव श्रीपंचमुख हनुमानजी को बारंबार ‘रामदूत’ कहकर वन्दन किया गया है। ‘नमोऽस्तु ते पञ्चमुख-रामदूत।’ हे पञ्चमुख-रामदूत! आपको हमारा प्रणाम।